देवउठनी एकादशी के दिन खाटू श्याम बाबा का जन्मोत्सव मनाया जाता है

खाटू श्याम घटोत्कच और माता अहिलावती जोकि एक नागकन्या थीं। इस दिन खाटू श्याम की विधिवत पूजा की जाती है और तरह–तरह के भोग लगाए जाते हैं। मान्यता है कि उनके दर्शन मात्र से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को खाटू श्याम का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस तिथि को देवउठनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। खाटू श्यामजी को भगवान कृष्ण का कलयुगी अवतार बताया गया है। जो कोई भी खाटू श्याम महाराज के दर्शन करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। खाटू श्याम पांडव पुत्र भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र हैं और इनका असली नाम बर्बरीक है।

देवी माता के भक्त खाटू श्याम

जिनको खाटू श्याम(बर्बरीक) के नाम से भी जाना जाता है, वे देवी माता के बहुत बड़े उपासक हैं। देवी मां के वरदान से उनको तीन दिव्य बाण की प्राप्ति हुई थी, जो अपने लक्ष्य को भेदकर वापस आ जाते हैं। इसलिए बर्बरीक अजेय थे। वे अपने पिता घटोत्कच से भी ज्यादा मायावी और शक्तिशाली हैं। खाटू श्याम बाबा दुनिया के सबसे बेहतरीन धनुर्धर भी हैं, उनसे बड़े धनुर्धर केवल श्रीराम हैं। यहां तक कि वे महाभारत के अर्जुन और कर्ण से भी बड़े धनुर्धर हैं।

खाटू श्याम बाबा का सिर

खाटू श्याम का मंदिर बहुत प्राचीन है, बताया जाता है कि औरंगजेब की सेना ने इस मंदिर को नष्ट कर दिया था। उस समय मंदिर की रक्षा के लिए कई राजपूतों ने अपना जीवन बलिदान कर दिया। वर्तमान में यह मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में खाटू नामक जगह पर स्थित है इसलिए इनको खाटू श्याम कहा जाता है। यहां केवल खाटू श्याम के सिर की पूजा की जाती है, यहां मूर्ति का धड़ नही है।

खाटू श्याम बाबा का मंदिर

महाभारत युद्ध खत्म होने के बाद भगवान कृष्ण ने बर्बरीक(खाटू श्याम)के सिर को आशीर्वाद देकर रूपावती नदी में बहा दिया। कलयुग शुरू होने के बाद सिर को खाटू गांव में पाया गया, यह गांव कलयुग शुरू होने तक अनदेखा था। बताया जाता है कि जहां पर वह सिर था, वहां गाय के थन से स्वत: ही दूध निकलने लगा। जब उस जगह को खोदा गया तो वहां खाटू श्याम बाबा का सिर मिला। तब उस समय के राजा रूप सिंह चौहान को सपने में एक सिर को मंदिर के अंदर स्थापित करने के लिए कहा गया। तब राजा ने मंदिर का निर्माण करवाया और सिर को मंदिर के अंदर स्थापित करवाया गया।

श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से मांगा दान

जब महाभारत का युद्ध हुआ तो बर्बरीक ने युद्ध देखने का निर्णय लिया। तब श्रीकृष्ण ने पूछा कि युद्ध में वे किसकी तरफ हैं, तब उन्होंने कहा कि जो पक्ष हारेगा, तब मैं उसकी तरफ से लड़ूंगा। इसलिए खाटू श्याम को हारे का सहारा कहा जाता है। ऐसे में श्रीकृष्ण युद्ध का परिणाम जानते थे और यह भी जानते थे कि अगर बर्बरीक लड़े तो यह पांडवों के लिए उल्टा ना पड़ जाए इसलिए श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को रोकने के लिए दान की मांग की।

खाटूश्याम ने किया रात भर भजन कीर्तन

श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से दान में उनका सिर मांग लिया। कहते हैं कि बर्बरीक ने रात भर भजन कीर्तन किया और फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को स्नान, पूजा अर्चना और दान करने के बाद अपने ही हाथ से शीश काटकर श्रीकृष्ण को दान में दे दिया। इसलिए उनको शीश दानी भी कहा जाता है। सिर दान करने के बाद भी बर्बरीक ने महाभारत युद्ध देखने की इच्छा जताई तब श्रीकृष्ण ने एक ऊंचे स्थान पर शीश को स्थापित कर दिया और अवलोकन की दृष्टि प्रदान की।

बर्बरीक ने बताया महाभारत युद्ध का निर्णय

युद्ध खत्म होने के बाद पांडवों में जीत का श्रेय लेने के लिए होड़ मच गई। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि इसका निर्णय केवल बर्बरीक का सिर ही कह सकता है। तब बर्बरीक ने कहा कि युद्ध में दोनों तरफ से केवल श्रीकृष्ण का सुदर्शन ही चल रहा था और द्रौपद महाकाली के अवतार में चारों तरफ रक्त पान कर रही थीं। अंत में भगवान कृष्ण ने प्रसन्न होकर बर्बरीक को वरदान दिया की कलयुग में तुम्हारी पूजा मेरे नाम श्याम से की जाएगी और तुम्हारा नाम लेने मात्र से कलयुग भक्तों का कल्याण होगा और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी।

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