छीबों के गुंता नदी के तट पर जुटे सनातन संस्कृति के संवाहकों ने सनातन संस्कृति की तरफ युवाओं के विमुख होने पर जताई चिंता।
भगवान राम की कर्मभूमि के रूप में ख्याति प्राप्त जनपद चित्रकूट के विकास खण्ड रामनगर के ग्राम पंचायत छीबों में श्रावण मास की पूर्णिमा के महापर्व एवं रक्षाबंधन के सुअवसर पर गुंता नदी के तट पर वृहस्पतिवार को श्रावणी संस्कार तथा उपनयन पूजन एवं सप्तर्षि पूजन विद्वान आचार्यों के निर्देशन में सम्पन्न हुआ। इस दौरान गाँव के तमाम लोग मौजूद रहे,गुंता नदी के तट पर वैदिक परंपरा के साथ श्रावणी संस्कार का आयोजन हुआ।
आचार्य के रूप में पण्डित श्री कान्त मिश्र गंगापारी रहे एवं संचालन बृज नन्दन प्रसाद बलुआ ने किया इस दौरान गाँव के लगभग 20 लोग मौजूद रहे।
छीबों गाँव में श्रावणी की शुरुआत की परम्परा कब से शुरू हुई इसकी सटीक जानकारी तो किसी को भी नहीं है लेकिन गाँव के बुजुर्ग बताते हैं कि सँस्कृत के ख्याति प्राप्त प्रकाण्ड विद्वान रहे स्व0 इन्द्र नारायण गुरूजी ने गांव में संकट मोचन संस्कृत महा विद्यालय की नींव डाली और उनके निर्देशन में संकट मोचन सँस्कृत महा विद्यालय छीबों के छात्रों एवं शिक्षकों द्वारा तथा अन्य क्षेत्रीय वैदिक विद्वानों के उपस्थिति में छीबों में लगभग 1962 के पहले से ही इसका अभ्युदय हुआ जो आज भी अनवरत रूप से जारी है लेकिन जिस विद्यालय के शिक्षक एवं छात्रों के द्वारा इस परम्परा का निर्वहन होता रहा है इधर कुछ वर्षों से वह वैदिक साहित्य की प्रयोगशाला संकट मोचन सँस्कृत महा विद्यालय छीबों अब इस कार्यक्रम में न तो रुचि ले रहे हैं और न ही कार्यक्रम में शामिल होते हैं जो हैरानी का विषय है।
आज के कार्यक्रम की बात करें तो गुंता नदी के तट पर सर्वप्रथम कार्यक्रम में मौजूद सभी लोगों को पंचगव्य प्राशन कराया गया
इसके बाद देव ऋषि पितर तर्पण स्नान व पूजन के कार्यक्रम शुरू हुए। इस दौरान छीबों के सारंगधर मिश्रा अशोक पाण्डेय एडवोकेट व्यास नारायण पाण्डेय पूर्व लेखपाल रामसुमिर मिश्रा कानूनगो रमाशंकर मिश्रा अरुण कुमार शुक्ला शिक्षक नांनबाबू त्रिपाठी भागवत गौतम भैयालाल त्रिपाठी कमलेश त्रिपाठी हरी नारायण पाण्डेय लवकुश पाण्डेय गोबरौल प्रदुमन ओझा समेत तमाम लोग उपस्थित रहे।
श्रावणी संस्कार कार्यक्रम के महोत्सव की बात करें तो इसकी नींव गुरूजी स्व0 इन्द्र नारायण जी ने 1962 में डाली थी अपने विद्यार्थियों को वैदिक संस्कृति की ओर आकर्षित करने के लिए शिक्षा एवं वैदिक संस्कृति के महापर्व श्रावणी से जोड़ा था और कालान्तर में इनके गोलोकवासी होने के बाद सरकारी सेवा में आने वाले इसी संस्कृत विद्यालय के आचार्य अपने छात्रों सहित स्वयं श्रावणी निर्वहन के कार्यक्रम में लग गए समय के साथ इस महाविद्यालय के तमाम जिम्मेदारों ने इस उत्तरदायित्व का निर्वहन किया।
लेकिन वर्तमान में इस सँस्कृत महा विद्यालय के जिम्मेदारों द्वारा इस परम्परा में रुचि नहीं ली जा रही है जिसके कारण इस सनातन परंपरा को बनाए रखने के लिए अब यह उत्तरदायित्व गाँव के श्री कान्त गंगापारी एवं बृज नन्दन प्रसाद बलुआ महाराज संभाले हुए हैं इन दोनों महानुभावों के नेतृत्व में श्रावणी पर्व परम्परागत रूप से गांव में सम्पन्न हो रही है लेकिन छीबों एवं पियरियामाफी गाँव के युवा लोग इस परम्परा की ओर ज्यादा रूचि नहीं ले रहे हैं जो चिन्ता की वजह है।
आधुनिक युवा पीढ़ी सनातन संस्कृति की उस परम्परा को लगता है भुला सा दिया है वर्ष में एक दिन आने वाली सावन पूर्णिमा के दिन को भी ध्यान में नहीं रखते हुए दिख रहे हैं।
ऐसे में इस सनातनी परंपरा के अनवरत जारी रखने के अस्तित्व में अब खतरा जरूर मंडराता हुआ दिख रहा है देखना होगा कि धर्म एवं संस्कृति की तरफ लोग कब तक उन्मुख होंते हैं या फिर यह ऐतिहासिक महत्व इतिहास बनकर रह जायेगा।