इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि न्यायिक कार्यवाही में वकीलों की दोहरी जिम्मेदारी है। वकीलों को कोर्ट में कार्यवाही व्यवधान उत्पन्न करने के बजाय सहयोग करना चाहिए।
कोर्ट ने एक जमानत अर्जी की सुनवाई के दौरान व्यवधान उत्पन्न करने वाले अधिवक्ता अरुण कुमार त्रिपाठी पर 10 हजार रुपए हर्जाना लगाया है।
थाना जरछ, जिला – गौतमबुद्ध नगर के मोहन ने हाईकोर्ट में जमानत अर्जी दाखिल की थी। मोहन के खिलाफ आरोपों में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 और 354 (सी) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 के तहत गंभीर अपराध शामिल थे। आरोप था कि मोहन ने एक महिला का नहाते समय वीडियो रिकॉर्ड किया, उसे ब्लैकमेल किया और वीडियो वायरल करने की धमकी देकर उसे शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर किया।
अर्जी की सुनवाई न्यायमूर्ति कृष्ण पहल ने की।
कहा गया कि मोहन के मोबाइल फोन से संबंधित वीडियो बरामद किया गया है और उसे फोरेंसिक विश्लेषण के लिए भेजा गया है। जिसपर कोर्ट ने अर्जी खारिज कर दी।
इसके बावजूद अधिवक्ता ने अपना पक्ष रखना जारी रखा, जिससे कार्यवाही में व्यवधान उत्पन्न हुआ। कोर्ट ने कहा कि
अधिवक्ता का यह व्यवहार आपराधिक अवमानना के समान है। लेकिन कोर्ट ने अवमानना कार्यवाही शुरू करने से परहेज किया। कहा कि वकील ने न केवल खुली अदालत में आदेश पारित होने के बाद भी जबरन बहस जारी रखी, बल्कि कोर्ट कार्यवाही में व्यवधान भी डाला। ऐसा आचरण न्यायिक प्रक्रिया के अधिकार और शिष्टाचार को कमजोर करता है।