इंटर कालेज कार्यकारी प्रधानाचार्य की बहाली के खिलाफ प्रबंध समिति की याचिका खारिज l

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कालका प्रसाद रामचंद्र कला केंद्र गर्ल्स इंटर कालेज बरेली की कार्यकारी प्रधानाचार्य विपक्षी श्रीमती ममता कुमारी को बहाल करने व क्षेत्रीय संयुक्त निदेशक को धारा 16 डी (3)के तहत कार्यवाही करने के निदेशक माध्यमिक शिक्षा उ प्र के आदेश की वैधता चुनौती याचिका पर हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया और कहा कि आदेश में कोई अवैधानिकता नहीं है।

यह आदेश न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी ने कालेज की प्रबंध समिति की तरफ से दाखिल याचिका को खारिज करते हुए दिया है।

याचिका पर‌ वरिष्ठ अधिवक्ता आर के ओझा व विपक्षी कार्यकारी प्रधानाचार्य के अधिवक्ता अनुराग शुक्ल ने बहस की।

मालूम हो कि विपक्षी कि माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड से कला व ड्राइंग विषय के लेक्चरर पद पर चयन किया गया।27 जुलाई 1996को प्रयागराज के डी पी गर्ल्स इंटर कालेज को नियुक्ति के लिए भेजा गया किंतु कालेज में ज्वाइन नहीं कर सकी तो 8 अक्टूबर 1999को जिला विद्यालय निरीक्षक बरेली को याची विद्यालय में ज्वाइन कराने का आदेश दिया गया।याची विद्यालय के प्रबंधक ने विपक्षी को नियुक्ति पत्र जारी किया और ज्वाइन कराया।और जिला विद्यालय निरीक्षक से लंबी सेवा के बाद प्रबंधक ने विपक्षी को प्रोन्नति वेतनमान देने का अनुरोध किया।जिसकी 2 फरवरी 23को डी आई ओ एस ने स्वीकृति दे दी । निरीक्षक के आदेश के खिलाफ प्रबंध समिति ने वरिष्ठ लिपिक के मार्फत याचिका दायर की जो खारिज हो गई। दुबारा याचिका दायर की गई।कहा गया प्रबंध समिति ने वरिष्ठ लिपिक को याचिका दायर करने के लिए अधिकृत किया है किन्तु याचिका में प्रस्ताव नहीं लगाया गया। नियमानुसार सोसायटी या अधिकृत व्यक्ति को हलफनामा सहित याचिका दायर करने का अधिकार है। याचिका जिम्मेदार व्यक्ति द्वारा दाखिल होनी चाहिए।इस मामले में ऐसा नहीं किया गया।

कोर्ट ने कहा प्रबंध समिति ने ही विपक्षी की नियुक्ति की। कार्यकारी प्रधानाचार्य बनाया।बाद में उसे शिकायत पर निलंबित कर दिया किंतु डी आई ओ एस ने बार -बार इसे अस्वीकार कर दिया। संयुक्त शिक्षा निदेशक ने तीन सदस्यीय कमेटी भी गठित की। रिपोर्ट विपक्षी के पक्ष में रही। प्रबंधन को ही दोषी माना।विपक्षी स्वीकृत छुट्टी पर थी बाद में चाइल्ड केयर अवकाश लिया।और नियुक्ति को लेकर प्रबंधन ने कोर्ट आने में काफी देरी की।विपक्षी की बहाली आदेश में कोई ग़लती नही होने के कारण कोर्ट ने प्रबंध समिति की याचिका पर हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया।

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